केले की खेती कैसे शुरू करें? केले की खेती का बिजनेस।

Kele ki Kheti Kaise Shuru Kare – भारत में केला सबसे पसंदीदा फलों में से एक है । यह भारतीय बाज़ारों में वर्ष के बारह महीने उपलब्ध रहता है। यही नहीं भारत में केले की कई प्रजातियाँ उपलब्ध हैं इसका स्वाद, इसमें निहित पोषक तत्व और औषधीय गुणों के कारण लगभग हर वर्ग से जुड़े लोग केले खाना पसंद करते हैं।

यद्यपि माना जाता है की इस फल का विकास दक्षिण पूर्व एशिया के आर्द्र उष्ण कटिबंधीय जलवायु में हुआ जिनमें भारत भी प्रमुख केन्द्रों में से एक था। केले की खेती का इतिहास बहुत पुराना है, मूल रूप से दक्षिण पूर्व एशिया के जंगलों में पाए जाने वाले इस फल की खेती सातवीं शताब्दी में मिस्र और अफ्रीका तक फ़ैल गई थी। यही कारण है की वर्तमान में लगभग विश्व भर में केले की खेती की जाती है।

केले में पोषक तत्वों की कोई कमी नहीं है और इसका मूल्य अन्य फलों की तुलना में कम रहता है। यही कारण है की यह फल दुनियाभर के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। केला विटामिन बी से भरपूर होने के साथ कार्बोहाइड्रेट का एक समृद्ध स्रोत भी होता है।

इस फल का इस्तेमाल पके और कच्चे दोनों रूपों में किया जाता है कच्चे केले का इस्तेमाल सब्जी और फल के रूप में भी खाने के लिए किया जाता है। तो वहीँ पके हुए केले को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में लाया जाता है। विरमान बी के अलावा केले में कई तरह के खनिज जैसे पोटेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम इत्यादि पाए जाते हैं।

चूँकि यह वसा और कोलेस्ट्रोल से मुक्त होता है इसलिए यह पचने में भी बेहद आसान होता है। केले के पाउडर से शिशुओं के लिए आहार का निर्माण किया जाता है। केले के निय्मित्सेवन करने के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं यह रक्तचाप, गठिया, आंत्रशोथ, अल्सर और ह्रदय रोग जैसी बीमारियों के जोखिम को कम करने में सहायक होता है।

केले के फलों का इस्तेमाल कई तरह के उत्पाद जैसे जैम, जैली जूस, वाइन, हलवा, चिप्स बनाने के लिए भी किया जाता है। यही नहीं केले के रेशों का इस्तेमाल कई तरह के उत्पादों जैसे बैग, बर्तन, दीवार पर टांगने वाले हैंगर बनाने के लिए किया जाता है। केले के पत्तों का इस्तेमाल खाना खाने के लिए प्रकृतिक थाली के रूप में भी किया जाता है।

ऐसे में कोई भी व्यक्ति जो खुद का कृषि से जुड़ा हुआ कोई बिजनेस शुरू करने पर विचार कर रहा हो उसके लिए Kele Ki Kheti Ka Business करना एक बहुत फायदेमंद आईडिया हो सकता है।

Kele Ki Kheti
Image: Kele ki Kheti

केले की खेती के लिए जलवायु

केले की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त मानी जाती है, आम तौर पर एक ऐसा क्षेत्र जहाँ पर 75-85% तक रिलेटिव humidity (RH) हो और 13® से 38® का तापमान हो वहाँ पर केले की खेती अच्छे से की जा सकती है। भारत में इस फल की खेती ह्यूमिड ट्रॉपिकल और ड्राई माइल्ड सबट्रॉपिक्स तक की जलवायु में पहले से की जा रही है।

इस तरह की जलवायु के लिए ग्रेंडैनाइन जैसी किश्म भी अच्छी रहती है, इस फसल को ठण्ड से नुकसान होने का भी डर रहता है लेकिन वह तब होता है जब तापमान 12ºC से कम हो। 38ºC से अधिक के तापमान से इस फसल के झुलसने का खतरा रहता है तो 12ºC से कम में चिलिंग इंजुरी का खतरा रहता है। यहाँ तक की 80 किलोमीटर से अधिक रफ़्तार से चलने वाली तेज हवाएँ भी इस फसल को नुकसान पहुँचा सकती हैं।

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केले की खेती के लिए मिटटी कैसी चाहिए?

केले की अच्छी पैदावार के लिए पर्याप्त उर्वरक वाली मिटटी की आवश्यकता होती है। मिटटी में थोड़ी नमी होने के साथ साथ जल निकासी का गुण होना भी आवश्यक है। इस फसल के लिए समृद्ध दोमट मिटटी जिसका पीएच 6-7.5 के बीच हो उस मिटटी को सबसे उपयुक्त माना जाता है।

एक ऐसी मिटटी जिसमें जल निकासी न होती हो, पोषक तत्वों की कमी हो उस मिटटी को इस फसल के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है खारी कठोर, चूने वाली मिटटी केले की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है ।

कुल मिलाकर देखें तो एक ऐसी मिटटी जिसमें सभी पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, पर्याप्त मात्रा में फास्फोरस, उपयुक्त पोटाश और जैविक पदार्थों की प्रचुरता हो, और वह अम्लीय और क्षारीय न हो इस तरह की फसल के लिए सबसे उपयुक्त होती है।

भारत में खेती करने के लिए केले की किश्में  

भारत की जलवायु अलग अलग राज्यों में अलग अलग है यही कारण है की भारत में केले की खेती देश भर में अलग अलग उत्पादन प्रणालियों के साथ अलग अलग परिस्थितियों में की जाती है। भारत में केले की फसल के लिए कई तरह की किश्मों का इस्तेमाल किया जाता है । भारत में खेती करने के लिए केले की कुछ प्रमुख किश्मों की लिस्ट इस प्रकार से है।

  • बौना कैवेंडिश
  • रोबस्टा
  • मोंथन
  • पूवन
  • नेंद्रन
  • लाल केला
  • न्याली
  • सफेद वेलची
  • बसराय
  • अर्धपुरी
  • रास्थली
  • कर्पुरवल्ली
  • करथली और ग्रैंडनाइन

भारत में ग्रैंडनाइन को एक ऐसी किश्म माना जाता है जो यहाँ पर हर तरह की जलवायु के हिसाब से अपने आपको परिवर्तित कर देता है। यही कारण है की केले की इस तरह की यह किश्म काफी लोकप्रियता प्राप्त कर रही है । यही नहीं इसके फलों के गुच्छे फैले हुए और बड़ी आकृति वाले होते हैं।  और ये अन्य केले की किश्मों की तुलना में सड़ते भी देर से हैं ।

केले की फसल के लिए खेत की तैयारी  

फसल चाहे किसी भी तरह की बो रहे हों, इसे बोने से पहले खेत को फसल के मुताबिक तैयार करने की आवश्यकता होती है।केले की फसल बोने से पहले जिस खेत में केले लगाने हों उसमें हरी खाद वाली फसल जैसे लोबिया ढैंचा इत्यादि उगाने की आवश्यकता होती है । खेत की मिटटी को समतल करने के लिए खेत में 3-4 बार जुताई की जाती है।

जुताई से उत्पन्न मिटटी को तोड़ने के लिए हैरो या रैटोवेटर का इस्तेमाल किया जा सकता है। मिटटी की तैयारी के वक्त इसमें FYM की खुराक मिला दी जाती है। केले के पेड़ को लगाने के लिए 45 सेमी x 45 सेमी x 45 सेमी गड्ढे खोदने की जरुरत होती है। और इन गड्ढों को लगभग 10किलो FYM 250 ग्राम नीम केक, 20 ग्राम कोंबोफ्यूरॉन और टॉपसॉइल के मिश्रण से भरा जा सकता है।

उसके बाद तैयार गड्ढों को सौर विकिरण के लिए छोड़ दिया जाता है यह प्रक्रिया मिटटी में उपलब्ध हानिकारक कीटों, और मिटटी से होने वाले रोगों से केले के पेड़ों को दूर रखने में सहायता प्रदान करेगी।

ऐसी लवणीय क्षार मिटटी जिसका पीएच स्तर 8 से अधिक होता है में जैविक पदार्थ मिलाने जरुरी हो जाते हैं। क्योंकि जैविक पदार्थों को मिलाने से लवणता में कमी आती है। केले को रोपाई करते समय उची दूरी और गड्ढों की गहराई का ध्यान रखना अति आवश्यक है।

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केले की रोपाई के लिए क्या सामग्री चाहिए?  

केले की खेती करने के लिए खेत में आपको केले का कोई बीज नहीं बोना होता है, बल्कि इसके छोटे पौधें जिन्हें (Sword Suckers) कहा जाता है। इसके लिए वे चाहिए होते हैं आम तौर पर आधा किलो से एक किलो वजन वाले Sword Suckers का इस्तेमाल रोपाई के लिए किया जाता है।

चूँकि इसके लिए मिलने वाले Sword Suckers का आकार और लम्बाई छोटी बड़ी हो सकती है, इसलिए सभी केले के पेड़ों को एक समान करना और इनका प्रबंधन थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

यही कारण है की इस समस्या से बचने के लिए इन-विट्रो क्लोनल या टिशू कल्चर पौधों को अच्छा माना जाता है। ये पौधे सोर्ड सकर की तुलना में रोगों से मुक्त, एक समान और स्वस्थ होते हैं इसलिए इनका प्रबंधन थोड़ा आसान हो जाता है।

टिशू कल्चर प्रणाली के कई लाभ होते हैं जिनमें से कुछ की लिस्ट इस प्रकार से है ।

  • इस तरह की या रोपाई कीट और रोग मुक्त हो सकती है।
  • सभी पौधों का एक समान विकास होता है जिससे उत्पादकता में सुधार हो सकता है।
  • इस तरह की रोपाई के जरिये केले की फसल जल्दी तैयार हो जाती है।
  • साल में कभी भी रोपाई की प्रक्रिया की जा सकती है क्योंकि इन-विट्रो क्लोनल पौधे साल भर उपलब्ध रहते हैं ।
  • इस तरह की रोपाई से 95% – 98% पौधों में केले के गुच्छे लगते हैं।  

केले की रोपाई कब करनी चाहिए?  

टिश्यू कल्चर केले की रोपाई साल के किसी भी महीने में की जा सकती है, लेकिन जब तापमान बहुत ज्यादा अधिक या बहुत ज्यादा कम हो तब या रोपाई नहीं की जानी चाहिए। केले की खेती के लिए सिंचाई हेतु ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। महाराष्ट्र में भौगौलिक परिस्थिति के हिसाब से इस तरह की खेती की रोपाई के लिए जून जुलाई और अक्टूबर नवम्बर महीनों को उपयुक्त माना जाता है।

केले की रोपाई के लिए 1.82 मीटर x 1.52 मीटर की उपयुक्त दूरी पर रोपाई करने की सिफारिश की जाती है। इस तरह से देखें तो एक एकड़ भूमि ले लगभग 1452 पौधे उगाये जा सकते हैं। ऐसे क्षेत्रों में जहाँ तापमान 5-7ºC तक गिर जाता है वहाँ पर रोपाई के दौरान पौधों के बीच दूरी 2.1m x 1.5m से कम नहीं होनी चाहिए।

जहाँ तक रोपाई की विधि का सवाल है इसमें पौधे पालीबैग में आते हैं और इन पौधों को इनकी जड़ों को छुए बिना पालीबैग को अलग कर दिया जाता है । उसके बाद पौधे के तने को जमीन की सतह से लगभग 2 सेमी. नीचे रखते हुए गड्ढों में लगाया जाता है । और हलके हाथ से इसके चारों ओर मिटटी भर दी जाती है । इसी प्रक्रिया में गहरी रोपाई करने से बचना चाहिए।

केले की खेती के लिए सिंचाई    

केला एक ऐसा पौधा है जिसे पानी से बहुत प्यार है यदि आप चाहते हैं की केले की खेती से आप अच्छा उत्पादन कर पायें तो इसके लिए आपको उचित सिंचाई की व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए। लेकिन परेशानी क्या होती है की केले की जड़ों से पानी की निकासी कम हो पाती है। इसलिए इस तरह की खेती के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल किया जाने का सुझाव दिया जाता है।

विशेषज्ञों की मानें तो केले को एक वर्ष में लगभग 2000 मिमी पानी की आवश्यकता होती है। और इस फसल की सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम का इस्तेमाल फायदेमंद रहता है। एक आंकड़े के मुताबिक केले की खेती के लिए ड्रिप सिस्टम सिंचाई का इस्तेमाल करने से 23-32% तक उपज में वृद्धि होती है और इसके साथ ही 56% तक पानी की बचत भी होती है। पौधे रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई की आवश्यकता होती है, ताकि पौधे जमीन में अच्छी तरह स्थापित हो जाएँ।

केले की खेती के लिए खाद और उर्वरक  

जिस तरह की मिटटी केले की खेती के लिए चाहिए होती है वह मिटटी पूरी तरह से इसके लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं कर सकती है। इसके लिए हमें मिटटी में कुछ अतिरिक्त खाद और उर्वरक मिलाने की आवश्यकता होती है। यही कारण है की प्रति पौधे के लिए कम से कम 20 किलो FYM, 200 ग्राम एन, 60-70 ग्राम पी और 300 ग्राम के की आवश्यकता हो सकती है।

इसके अलावा प्रति मीट्रिक टन उत्पादन हेतु 7-8 किग्रा नाइट्रोजन, 0.7- 1.5 किग्रा फास्फोरस की भी जरुरत होती है । केले की फसल को यदि उचित पोषक तत्व मिल जाते हैं तो उत्पादन में बढ़ोत्तरी निश्चित हो जाती है ।

यद्यपि पारम्परिक रूप से जो किसान केले की खेती कर रहे होते हैं वे यूरिया का ज्यादा और फास्फोरस का कम इस्तेमाल करते हैं । इनके नुकसान से बचने के लिए तरल उर्वरकों को इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। सही खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल कुल उपज में 25-30% की वृद्धि करने में सहायक होता है।

केले की कटाई कब की जाती है?

केले के पेड़ पर लगे केले आपको स्पष्ट दिखाई देते हैं की इनका आकार अब परिपक्व ही चुका है। आम तौर पर जब केले का पहला गुच्छा हथेली के तौर पर परिवर्तित होता है, तो उसके 100-110 दिनों बाद यह कटाई के लिए तैयार हो जाता है। पेड़ पर पके हुए केलों का रंग भी पीला हो जाता है। ऐसे में इन गुच्छों की कटाई के बाद इन्हें सुरक्षित रूप से किसी गद्दीदार टोकरी इत्यादि में रखा जाना चाहिए।

इन केले के गुच्छों को रौशनी से दूर रखा जाना जरुरी होता है, वह इसलिए क्योंकि रौशनी से दूर होने से केले नरम और पक बड़ी जल्दी जाते हैं। आम तौर पर जिन केलों को घरेलू बाज़ार में बेचा जाता है उन गुच्छों को पूरे डंठल के साथ वैसे ही रहने दिया जाता है। लेकिन निर्यात किये जाने वाले केलों को 4-16 केलों के सेट के साथ लम्बाई इत्यादि आकृति में वर्गीकृत करके अलग रख दिया जाता है ।

केले की खेती से जुड़ी अन्य जरुरी गतिविधियाँ    

  • जिस खेत में केले की खेती की जा रही हो उसमें कुछ और नहीं बोना चाहिए, क्योंकि केले की जड़ का सिस्टम सतही होता है। इसलिए अन्य फसलें इसे नुकसान पहुँचा सकती हैं। लेकिन यदि किसान चाहें तो कम अवधि वाली हरी खाद वाली फसलें जैसे मूंग, लोबिया, ढैंचा इत्यादि पर विचार कर सकते हैं।
  • केले के शारीरिक और उपज गुणों में सुधार करने के लिए ZnSO4 (0.5%), FcSO4 (0.2%), CuSO4 (0.2%) और H3Bo3 (0.1%) इत्यादि को अपनाया जा सकता है।
  • मेल बड को गुच्छों से हटा दिया जाना चाहिए इस प्रक्रिया से फलों के विकास में सहायता होती है और गुच्छों का वजन भी बढ़ता है।
  • थ्रिप्स के हमले से फलों का रंग बदरंग हो सकता है इससे बचने के लिए मोनोक्रोटोफॉस (0.2%) का छिडकाव किया जा सकता है।
  • केले के गुच्छों को केले की ही सूखे पत्तियों से ढका जा सकता है इससे फलों पर सीधे रोशनी नहीं पड़ती है , जिससे फलों का स्वाद और गुणवत्ता दोनों बढती हैं । लेकिन बरसात में ऐसा नहीं करना चाहिए नहीं तो फलों को नुकसान हो सकता है।
  • केले के कई गुच्छों में इनके अधूरे चाक होते हैं ये अधूरे चाक अच्छे उत्पादन के लिए ठीक नहीं होते हैं। इसलिए इन चाकों को खिलने के बाद तुरंत हटा देना चाहिए। इससे केले के दुसरे चाकों को वजन बढाने में मदद प्राप्त होती है।
  • केले के गुच्छे का वजन भारी हो सकता है, जिसके कारण पौधे का संतुलन बिगड़कर पौधा गिर सकता है और ऐसे में उत्पादन का स्तर गिर सकता है। इसलिए केले के पौधों को बाँस से त्रिभुज बनाकर सहारा दिया जा सकता है ।
  • कटाई के बाद भी केले को पकाकर बाज़ार में उतारा जाता है, ऐसे में केलों की कटाई उनकी परिपक्वता अवस्था में होनी चाहिए। अन्यथा फल खराब हो सकते हैं।     

FAQ (सवाल/जवाब)

केले की खेती कब शुरू करनी चाहिए?

वैसे तो इसकी शुरुआत वर्ष के किसी भी महीने से की जा सकती है लेकिन जून- जुलाई और अक्टूबर – नवम्बर महीनों को इसकी शुरुआत के लिए उपयुक्त माना गया है।

केले की खेती कितने महीनों की होती है?

रोपाई के 11-12 महीनों के बाद केले की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

निष्कर्ष – जैसा की हम पहले भी बता चुके हैं की Kele Ki Kheti में पौधों की रोपाई करने के 11-12 महीने बाद इससे उत्पादित केले काटने के लिए तैयार हो जाते हैं। 28-30 महीनों में यह फसल लगभग तीन बार तैयार हो जाती है।

रोपाई के बाद पहली फसल 11-12 महीनों में, उसके बाद दूसरी फसल उसके 9-10 महीनों में और तीसरी फसल 8-9 महीनों में तैयार हो जाती है। एक बार रोपाई करने के बाद सैलून तक केले के पेड़ फल देते रहते हैं । बढ़िया प्रबंधन के साथ केले की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर भूमि में 100 टन तक केलों का उत्पादन किया जा सकता है।     

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