Jeera ki Kheti – भारत को विविधताओं से भरा हुआ देश यूँ ही नहीं कहा जाता है। यहाँ हर राज्य का खान पान अलग है, और भारतीय खान पान में मसालों का अपना अहम् योगदान है। भारतीय मसालों में जो सबसे अधिक इस्तेमाल में लाया जाता है जीरा। खाने में जीरे की खुशबु खाने का स्वाद दुगुना कर देता है। इसलिए भारतीय खाने में लगभग हर प्रकार की डिश बनाने में जीरे का इस्तेमाल किया जाता है।
जीरा नामक यह मसाला खाने में न केवल स्वाद को बढ़ाता है बल्कि यह आपके स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभदायक होता है, इसलिए इसके सेवन से आपको कई स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। जीरा के पौंधे की जीरक के नाम से जाना जाता है जो सौंप के पौधे की तरह होता है। जीरक का अर्थ अन्न को पाचन करने में सहायता प्रदान करने से लगाया जा सकता है। यही कारण है की भारतीय खाने में इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है।
यद्यपि भारतीय सभी प्रकार के मसाले पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं, लेकिन जीरा की माँग तो बाज़ारों में हमेशा बनी रहती है। भारत देश में शायद ही कोई ऐसा घर हो जहाँ पर मसालों में आपको जीरा देखने को नहीं मिलेगा। जीरे की खेती यदि आधुनिक ढंग से की जाय, तो यह आपकी मोटी कमाई कर पाने में सक्षम हो सकता है। इसलिए आज हम हमारे इस लेख में जीरे की खेती से सम्बंधित जानकारी प्रदान करने वाले हैं। ताकि इस तरह का यह बिजनेस करके इच्छुक व्यक्ति अपनी मोटी कमाई कर सके।

जीरा का वानस्पतिक नाम और इसकी पौधे की विशेषता क्या है
जीरे के पौधे का वानस्पतिक नाम क्यूमिनम सायमिनम है और यह एपियेशी फैमिली का एक पुष्पीय पौधा होता है। इस पौधे से उत्पन्न बीज को ही जीरा कहा जाता है। इस पौधे की ऊंचाई लगभग ३० से ५० सेमी. तक होती है, और इस पर उत्पन्न बीज को सुखाकर इससे अलग कर लिया जाता है। इस पौधे के तने में कई शाखाएँ होती हैं और प्रत्येक शाखा की कई कई उप शाखाएँ भी होती है। और इन शाखाओं पर फूल खिलने के बाद बीज बनना शुरू होता है जिसे जीरा कहा जाता है।
भारत में जीरे की खेती कहाँ कहाँ की जाती है
एक विश्वसनीय आंकड़े के मुताबिक भारत में उत्पादित कुल जीरे का लगभग 80% हिस्सा गुजरात और राजस्थान राज्यों में उत्पादित किया जाता है । जिसका मतलब यह है की गुजरात जीरा उत्पादन में देश में सबसे अग्रणी राज्य है, जबकि राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहाँ पर देश में कुल उत्पादित जीरे का लगभग २८% हिस्सा पैदा किया जाता है।
गुजरात में जहाँ प्रति हेक्टेयर भूमि पर ५५० किलोग्राम जीरे का उत्पादन किया जाता है वहीँ राजस्थान में प्रति हेक्टेयर भूमि पर ३८० किलोग्राम जीरे का उत्पादन किया जाता है। जिसका सीधा सा मतलब यह है की गुजरात में जीरे की प्रति हेक्टेयर उपज राजस्थान की तुलना में कहीं अधिक है। इन दो अग्रणी राज्यों के अलावा लगभग अन्य सभी राज्यों में भी जीरे की खेती की जाती है।
जीरे में कौन कौन से विटामिन और पोषक तत्व पाए जाते हैं
जीरे का इस्तेमाल कई तरह की रोगों में औषधि के तौर पर भी किया जाता है यह एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सिडेंट होता है जो सूजन को कम करने के अलावा मांसपेशियों को भी आराम पहुँचाने में सहायता प्रदान करता है । इसमें कई तरह के खनिज एवं विटामिन पाए जाते हैं इनमें फाइबर आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीज, जिंक, मैगनीशियम व विटामिन ई, ए, सी और बी-कॉम्प्लैक्स इत्यादि प्रमुख हैं। यही कारण है की जीरे का इस्तेमाल आयुर्वेद में औषधि के तौर पर भी बताया जाता है। लेकिन लोग इसे मुख्य तौर पर एक मसाले के तौर पर ही बेहतर जानते हैं, और इसके इस्तेमाल को भी बेहतर ढंग से समझते हैं।
जीरे की खेती के लिए जीरे की कुछ उन्नत किस्में
आर जेड-19 : भारत में जीरे की किस्मों में यह किस्म सबसे अधिक उपज वाली किस्म मानी जाती है, एक हेक्टेयर भूमि पर लगभग ९-११ क्विंटल जीरे की फसल उगाई जा सकती है । जीरे की यह फसल लगभग ४ -५ महीने यानिकी १२०-१२५ दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म की खासियत यह है की इसमें उखटा, छाछिया व झुलसा जैसे पौधों के रोग बहुत कम लगते हैं।
आर जेड- 209 : इस किस्म के जीरे के दाने मोटे होते हैं लेकिन इस किस्म को प्रति हेक्टेयर भूमि पर ७-८ क्विंटल तक ही उगाया जा सकता है । बाकी यह भी उपर्युक्त बताई गई किस्म की तरह ही ४ से ५ महीनों के अन्दर तैयार हो जाती है।
जी सी- 4 : इस किस्म के जीरे के बीज आकार में बड़े होते हैं एक हेक्टेयर भूमि में इस किस्म के जीरे का उत्पादन ७-९ क्विंटल तक किया जा सकता है। इस किस्म पर उखटा रोग लगने की संभावना अधिक होती है, और यह १०५ से ११० दिनों के अन्दर तैयार हो जाती है।
आर जेड- 223 : इसके बीज सामान्य आकार के होते हैं और प्रति हेक्टेयर इसका उत्पादन ६ से ८ क्विंटल तक किया जा सकता है, इस किस्म को उखटा रोग से ज्यादा खतरा नहीं होता है और यह भी ११० से ११५ दिनों में तैयार हो जाती है।
जीरा फार्मिंग शुरू करने से पहले ध्यान देने योग्य बातें
- जीरे की बुवाई के लिए उपयुक्त मौसम शीत होता है, इसलिए इसकी बुवाई १ नवम्बर से २५ नवम्बर के बीच कर देनी चाहिए। जानकारों के मुताबिक नवम्बर माह के बीच यानिकी १५ से १८ नवम्बर तक इसकी बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
- जीरे की बुवाई को पक्तिबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए यानिकी जीरे के पौधों के बीच लगभग ३० सेमी की दूरी होनी आवश्यक है, जिससे बाद में इस फसल की खरपतवार, सिंचाई इत्यादि करने में कोई परेशानी न हो।
- शुरूआती दौर में जीरे की खेती के लिए ठंडी एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त मानी गई है, लेकिन जब बीज तैयार होने वाला होता है तो उस समय गर्म एवं शुष्क जलवायु इसके लिए बेहतर होती है।
- अंकुरण के समय जीरे की फसल के लिए उपयुक्त तापमान १० डिग्री से लेकर ३० डिग्री के बीच माना जाता है।
- जिन क्षेत्रों में अधिक नमी रहती है और पाला अधिक पड़ता है, उन क्षेत्रों में जीरे की फसल नहीं की जा सकती क्योंकि वहां पर इस फसल पर छाछ्या एवं झुलसा जैसे रोग लगने की संभावना अधिक होती है।
- इसकी खेती के लिए रेतीली चिकनी बलुई या फॉर दोमट मिटटी जिनमें कार्बनिक पदार्थों की अधिकता होती है और इस मिटटी में पानी ठहरता नहीं है उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन इसके बावजूद भी जीरे की खेती (Jeera Farming) सभी प्रकार की मिटटी में की जाती है।
- जब जीरे की फसल पकने वाली होती है तो तब इस फसल में सिंचाई नहीं करनी चाहिए, उससे पहले सिंचाई के लिए फाउंटेन मेथड का इस्तेमाल उपयुक्त रहता है। यदि किसी खेत में इस साल जीरा बोना हो तो अगले साल उसी में जीरा नहीं बोना चाहिए, क्योंकि इससे फसल में रोगों के लगने की संभावना अधिक होती है।
जीरे की खेती कैसे करें – जीरा फार्मिंग बिजनेस
जीरा फार्मिंग बिजनेस शुरू करने के लिए आपको जमीन की आवश्यकता होती है। यदि आपके पास खुद की जमीन है तो आप उसी में यह खेती कर सकते हैं।लेकिन यदि आपके पास जमीन नहीं है और आप इस तरह का यह बिजनेस शुरू करने पर विचार कर रहे हैं, तो आप चाहें तो जमीन को लम्बे समय तक लीज पर भी ले सकते हैं। तो आइये जानते हैं की ऐसे लोग जिनके पास खुद की जमीन या लीज पर ली हुई जमीन है वे जीरे की खेती कैसे शुरू कर सकते हैं।
खेत को जरुरी खाद और उर्वरक प्रदान करें
जीरे की बुवाई से पहले उस खेत को इस फसल के लिए तैयार करने के लिए उस खेत में गोबर खाद डाली जाती है। जिस खेत में आप जीरे की खेती करना चाहते हैं यदि उसमें कीट पतंगों की समस्या है जो फसल को नुकसान पहुँचा सकते हैं तो उसके लिए गोबर खाद के 1.5% या प्रति हेक्टेयर भूमि में २० से २५ किलो क्विनालफॉस डालकर खेत की मिटटी में अच्छी तरह मिलाया जा सकता है।
इस फसल के लिए यदि प्रति हेक्टेयर भूमि में १० से १५ टन गोबर खाद डाली जाती है तो फिर इस फसल को अन्य किसी खाद की आवश्यकता नहीं होती है। इसके अलावा जीरे की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर भूमि में 30 किलो नत्रजन 20 किलो फॉस्फोरस एवं 15 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है।
खेत को तैयार करें
खेत की तैयारी के लिए आपको सबसे पहले खेत में हल या ट्रेक्टर चलाना होता है, जो जमी हुई मिटटी को खोदने में सक्षम होता है। उसके बाद जब खेत में गहरी जुताई कर ली जाती है तो फिर उसमें दो तीन जुताई करने की आवश्यकता होती है, यह देशी हल या ट्रेक्टर दोनों से की जा सकती है। बाद में खेत को समतल करने के लिए पाटे का इस्तेमाल किया जाता है ।
जब खेत को फसल बोने के लिए समतल कर दिया जाता है तो उसके बाद क्यारी बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है आम तौर पर इसके लिए ७ से ८ फीट तक की लम्बी क्यारियां बनाई जाती है, क्यारियां बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है की सभी क्यारियां एक सी बनें। यह इसलिए जरुरी होता है क्योंकि इससे फसल की सिंचाई, निराई, गुड़ाई इत्यादि करने में आसानी होती है।
क्यारियां तैयार होने के बाद बीज बोने की प्रक्रिया शुरू होती है, और इसमें प्रति बीघे में लगभग २ किलो बीज की खपत होती है। इस प्रक्रिया को करते वक्त २ किलो बीज में2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नाम की दवा का इस्तेमाल किया जाता है। पंक्तियों में बुवाई के लिए सीड ड्रिल नामक यंत्र का इस्तेमाल किया जा सकता है ।
फसल की सिंचाई करें
जैसे ही आप जीरे की फसल की बुवाई पूर्ण कर लेते हैं उसके तुरंत बाद इस फसल को एक हलकी सी सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके पश्चात् इस फसल को बुवाई के ८ से १० दिनों बाद दूसरी सिंचाई की आवश्यकता होती है, ताकि जीरा खेत में पूरी तरह से अंकुरित हो पाए। दूसरी सिंचाई के ८ से १० दिन बाद तीसरी सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है।
और इन तीन सिंचाइयों के पूर्ण होने के बाद २० दिनों के अन्तराल पर जब तक की जीरे के पौधे में दाना न बन जाय तब तक सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की जब जीरे की फसल पकनी वाली हो, तब इसमें सिंचाई नहीं करनी चाहिए।
खरपतवारों को रोकें
खरपतवार आपकी जीरे की फसल को नुकसान पहुँचा सकते हैं, इसलिए इनको रोकने के लिए उपाय करने बेहद जरुरी हैं। इस फसल को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए इसकी पहली सिंचाई के बाद इसमें प्रति हेक्टेयर भूमि में १ किलो पेडिंमिथेलीन खरतपतवार नाशक दवा का छिडकाव पानी मिलाकर करना चाहिए। इस एक किलो दवा में लगभग ५०० लीटर पानी डाला जाता है।
जब इस दवा का छिडकाव कर लिया जाता है तो उसके लगभग एक महीने बाद फसल की एक गुड़ाई कर देनी चाहिए, जिससे इस फसल में खरपतवार नियंत्रित रहे।
फसल की कटाई करें
आम तौर पर जीरे की फसल १२० से १२५ दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। लेकिन यहाँ पर ध्यान रखने वाली बात यह है की जब तक जीरे का बीज एवं पौधा भूरे रंग का न हो जाय तब तक उसकी कटाई नहीं करनी चाहिए । लेकिन जब इनका रंग भूरा हो जाय तो इस फसल की कटाई कर देनी चाहिए। काटने के बाद पौंधों को धुप में अच्छी तरह सुखाना चाहिए और उसके बाद थ्रेसर मशीन की मदद से दाना अलग करके जीरे को बोरोन इत्यादि में भरकर स्टोर किया जाना चाहिए।
जीरे की खेती में आने वाली लागत और मुनाफा
भारत मेंउगाई जाने वाली जीरे की नस्लों में आप किसी भी नस्ल का चुनाव करके एक हेक्टेयर भूमि में लगभग ७ से ८ क्विंटल जीरे का उत्पादन कर सकते हैं। और जानकारी के मुताबिक एक हेक्टेयर भूमि पर जीरे की खेती करने में लगभग ३५ से ४० हज़ार रूपये का खर्चा आता है ।
रिटेल में जीरे की कीमत १५० रूपये प्रति किलो से अधिक है, यदि थोक में आप इसे ११० या १२० रूपये किलो भी बेचते हैं, तो प्रति हेक्टेयर उत्पादन पर आप ४० से ४५ हज़ार रूपये का लाभ अर्जित कर पाने में सक्षम होंगे।
निष्कर्ष –
भारतीय मसालों में जीरा एक प्रमुख मसाला है, यही कारण है की लगभग हर घर की रसोई में यह आपको देखने को मिल जाएगा। भारत में जीरे की खेती कम ज्यादा लगभग हर राज्य में की जाती है लेकिन गुजरात और राजस्थान इसके उत्पादन में अग्रणी राज्य हैं। इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता की आप भारत के किसा राज्य से सम्बन्ध रखते हैं, यदि आप इस बिजनेस को शुरू करने के प्रति गंभीर हैं । तो आप हमारे द्वारा दी गई जानकारी का लाभ उठाकर जीरे की खेती (Jeera Farming Business) शुरू कर सकते हैं।
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