पालीहाउस प्रोजेक्ट हिंदी में। ग्रीन हाउस बनाकर खेती कैसे करें।

पालीहाउस को ग्रीन हाउस भी कहते हैं। पारम्परिक खेती की यदि हम बात करें तो इस तरीके में किसान या खेती करने वाले के नियंत्रण में जलवायु नहीं होती है।

उदाहरण के लिए यदि आप खेत में कोई ऐसी फसल बोते हैं, जिसे ज्यादा धुप से नुकसान हो सकता है। तो आप सूरज की तेज किरणों से उस फसल को बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते।

आप उस खेत का तापमान मेन्टेन करने के लिए कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि पारम्परिक खेती में यह सब खेती करने वाले व्यक्ति या किसान के नियंत्रण से बाहर होता है।

फसल के अनुकूल मौसम या जलवायु न होने के कारण उत्पादन कम और उत्पादित फसल की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती है, जिसका प्रत्यक्ष असर किसान या खेती करने वाले व्यक्ति की कमाई पर पड़ता है।

यही कारण है की वर्तमान में किसानों और खेती करने वाले लोगों द्वारा खेती करने की भी नई और आधुनिक तकनीकें अपनाई जा रही हैं, ताकि वे उत्पादन और फसल की गुणवत्ता दोनों में सुधार करके अपनी कमाई भी बढ़ा सकें।

वर्तमान में ग्रीन हाउस या पालीहाउस टेक्नोलॉजी का चलन इसलिए भी बड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, क्योंकि बहुत सारे फूल जिनका इस्तेमाल गुलदस्ते इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है, और बहुत सारी सब्जियाँ जैसे शिमला मिर्च इत्यादि कवर्ड किये हुए वातावरण में ही उगती हैं। ऐसे में इन्हें उगाने के लिए ग्रीन हाउस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है।

यह ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी फसल की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार करती है, और फसल से होने वाले नुकसान के जोखिम को कम करती है। इसके अलावा यह उत्पादन लागत को भी कम करती है। इन्हीं सब फायदों के चलते ग्रीन हाउस टेक्नोलॉजी वर्तमान में एक बेहद लाभकारी कमर्शियल गतिविधि बन गई है ।

एक फसल को अच्छी तरह से फलने फूलने के लिए जिन चीजों की आवश्यकता है इस ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी के माध्यम से उन्हें आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

इनमें आर्द्रता, कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर, सूर्य से मिलने वाले प्रकाश, तापमान इत्यादि को फसल की आवश्यकता के अनुरूप आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

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पालीहाउस या ग्रीन हाउस क्या होता है

परम्परागत तरीकों में पालीहाउस का निर्माण लकड़ी के फ्रेम बनाकर उनमें काँच का इस्तेमाल करके किया जाता था। लेकिन जब से प्लास्टिक में टेक्नोलॉजी का आगमन हुआ तब से पाली हाउस या ग्रीन हाउस बनाने के लिए काँच की जगह प्लास्टिक का इस्तेमाल होने लगा है।

जब इन्हें काँच से बनाया जाता था तब इन्हें आम तौर पर ग्रीन हाउस के नाम से जाना जाता था। लेकिन वर्तमान में इन्हें बनाने में प्लास्टिक या पालीथीन का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए इसे पालीहाउस के नाम से जाना जाता है।

इसके अलावा वर्तमान में लकड़ी के फ्रेम का इस्तेमाल आर्थिक दृष्टि से किफायती नहीं है यही कारण है की लकड़ी की फ्रेम की जगह जी. आई. पाइप या माइल्ड स्टील पाइप का इस्तेमाल किया जाने लगा है।

कहने का आशय यह है की वर्तमान में पालीहाउस का निर्माण स्टील या जी आई पाइप से निर्मित फ्रेम से होता है और इन्हें ऊपर से एल्युमीनियम के ग्रिपर की मदद से प्लास्टिक के आवरण से ढका जाता है।

सब्जियों, फूलों या अन्य फसलों के उत्पादन के लिए ग्रीनहाउस का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि यह इन्हें बारीश, विकिरण, तापमान और हवा इत्यादि से बचाता है। और फसल के उत्पादन के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में सहायक होता है।

यह पौधों के विकास के लिए आवश्यक CO2 की मात्रा को भी बढाता है जिससे फसलों का उत्पादन बढ़ता है।

पालीहाउस का निर्माण और उपकरण

हालांकि भारत में पालीहाउस से की जाने वाली खेती का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, बल्कि भारत में इसकी शुरुआत अभी अभी हुई है। लेकिन इसके जरिये ऑफ सीजन में सब्जियों एवं फसलों का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करने का प्रयास किया जा रहा है।  

पालीहाउस के माध्यम से खेती करने से उचित परिणाम हासिल हो सकें इसके लिए इसकी बेहतर टेक्नोलॉजी और संरचना को अपनाना आवश्यक होता है। जैसे इसकी ऊंचाई 6-6.5 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए। ताकि इसके अन्दर उपयुक्त वायु परिसंचरण की सुविधा बनी रहे।

इसके अलावा उपयुक्त वेंटिलेशन के लिए टॉप और साइड में उपयुक्त स्थान प्रदान किया जाना भी आवश्यक होता है। वर्षा ऋतू के दौरान पालीहाउस के टॉप और साइड जहाँ पर वेंटिलेशन के लिए जगह छोड़ी गई हो उसे पॉलिथीन से ढका जाना चाहिए। ताकि बारीश का पानी पौंधों या फसलों को नुकसान न पहुँचा सके।

पालीहाउस के लिए आवश्यक उपकरण

एक पालीहाउस या ग्रीन हाउस के तहत खेती करने के लिए कई तरह के उपकरणों की आवश्यकता हो सकती है। इनमें आम तौर पर निम्न कार्यों के लिए उपकरणों की आवश्यकता होती है।

लाइटिंग और शेडिंग करने के उपकरण –  अलग अलग फसल के लिए अलग अलग जलवायु, नमी, प्रकाश, हवा इत्यादि की आवश्यकता हो सकती है। ऐसे में पालीहाउस में सफलतापूर्वक अच्छा उत्पादन करने के लिए लाइटिंग और शेडिंग उपकरणों की आवश्यकता हो सकती है।  

CO2 प्रणाली के लिए उपकरण – पौधों के विकास के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड बेहद जरुरी होती है। ऐसे में ग्रीन हाउस में कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर को मेन्टेन करके के लिए भी उपकरणों की आवश्य्क्य होती है।

सिंचाई प्रणाली – फलों, फूलों, सब्जियों या अन्य किसी भी प्रकार की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए उसकी सिंचाई करना बेहद आवश्यक होता है। ऐसे में नियमित तौर पर सिंचाई प्रदान करने के लिए सिंचाई प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए कई तरह के उपकरणों की आवश्यकता होती है।

वेंटिलेशन उपकरण – पालीहाउस के अन्दर अच्छे ढंग से वेंटिलेशन प्रदान करना आवश्यक होता है, ताकि उसके अन्दर वायु परिसंचरण बना रहे। इसके लिए खेती करने वाला व्यक्ति या किसान एग्जॉस्ट फैन का भी इस्तेमाल कर सकता है , ताकि तापमान और वायु में नमी को मेन्टेन किया जा सके।

हीटिंग सिस्टम के लिए उपकरण – फसलों को फंगल इन्फेक्शन इत्यादि से बचाने के लिए कई फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए हीटिंग सिस्टम की आवश्यकता होती है । खास तौर पर ऐसे क्षेत्र जहाँ पर ठंडी अधिक होती है वहाँ पर कुछ फसलों के उत्पादन के लिए इस तरह के सिस्टम की आवश्यकता हो सकती है।

पालीहाउस बनाने के लिए कैसी जमीन चाहिए

पालीहाउस बनाने के लिए जरुरी नहीं है की वह जमीन उपजाऊ ही हो, बल्कि एक अनउपजाऊ और भूमि का कोई ऐसा हिस्सा जो किसी उपयोग में नहीं लाया जा रहा हो वह पालीहाउस बनाने के उपयोग में लाया जा सकता है।

लेकिन इतना जरुर ध्यान रखना होता है की यह अन्य आस पास की जमीन से ढलान पर न हो, कहने का आशय यह है की ग्रीनहाउस के आस पास बरसात में पानी एकत्रित नहीं होना चाहिए।

ग्रीनहाउस के अन्दर फसल या पौधों के लिए जो बेड तैयार किये जाते हैं उनमें लाल मिटटी का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए यदि उस एरिया में लाल मिटटी उपलब्ध नहीं है तो किसान या खेती करने वाले व्यक्ति को कहीं और से लाल मिटटी का प्रबंध करने की आवश्यकता होती है।

पालीहाउस का निर्माण करने के लिए 50-माइक्रोन परत वाली जस्ती लोहे के पाइप का इस्तेमाल किया जाता है, तथा इन्हें जोड़ने के लिए नट, बोल्ट और क्लैंप का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए 15 @mm से 65@mm साइज़ और 3 mm मोटाई के जी आई पाइप का इस्तेमाल किया जाता है।

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एक अच्छे पाली हाउस की क्या विशेषताएं होती हैं

एक अच्छे और फायदेमंद पालीहाउस की कुछ विशेषताएं हो सकती हैं, जो इस प्रकार से हैं।

  • एक पाली हाउस का निर्माण करने के लिए कम से कम 500 वर्ग मीटर जगह होनी अनिवार्य है, यदि जगह इससे कम होगी तो पालीहाउस प्रोजेक्ट लाभ कमाने में सफल नहीं हो पायेगा।
  • तापमान और नमी मेन्टेन करके अच्छे परिणाम लाने के लिए पाली हाउस की चौड़ाई 40 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • पाली हाउस में वेंटिलेशन के लिए छोड़ी गई जगह 12% से कम और 20% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • मल्टी स्पेन वातावरण में गठन से लेकर ग्रीनहाउस गटर की कम से कम ऊंचाई 4 मीटर होनी ही चाहिए।
  • गटर बिना जोड़ का होना आवश्यक है और उचित जल निकासी और लीकेज से सुरक्षा के लिए 2% की ढलान आदर्श मानी जाती है।

पालीहाउस के लिए मिटटी कैसी चाहिए   

पालीहाउस या ग्रीन हाउस के माध्यम से फूलों की खेती या सब्जियों की खेती से सफलतापूर्वक लाभ कमाने के लिए मिटटी का चयन एक बेहद महत्वपूर्ण और अनिवार्य कदम है। इसलिए मिटटी का चयन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

  • मिटटी से फसलें पोषक तत्वों का सही से अवशोषण कर सकें इसके लिए मिटटी का पी. एच स्तर 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
  • पौधों की जड़ों की वृद्धि और अच्छे उत्पादन के लिए झरझरी मिटटी यानिकी जिससे पानी का निकास आसानी से हो जाय, चाहिए होती है।
  • मिटटी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए इसमें चावल की भूसी, कोकोपिट, और गोबर खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • पालीहाउस में पौंधों के लिए बेड की तैयारी करने से पहले विभिन्न कीट पंतगों को नष्ट करने के लिए फगमेंशन क्रिया को किया जाना आवश्यक होता है।
  • मिटटी को डिसइन्फेक्ट करने के बाद मिटटी को अच्छे से मिलाया जाना चाहिए।   

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