क्या भारत में भांग की खेती [Hemp Farming] की जा सकती है?

हालांकि भांग की खेती यानिकी Hemp Farming एक सामान्य खेती नहीं है, वह इसलिए क्योंकि अधिकतर राज्यों में इस तरह की खेती पर प्रतिबंध है। प्रतिबंध होने का प्रमुख कारण यह है की इसके पत्तों का इस्तेमाल नशे के लिए किया जाता है, चरस जैसा नशेड़ी उत्पाद भांग के पत्तों की ही देन होती है। लेकिन यहाँ पर समझने वाली बात यह है की नशे के लिए इस्तेमाल में लायी जाने वाली भांग अलग होती है, और विभिन्न औषधियों इत्यादि का निर्माण करने में इस्तेमाल में लायी जाने वाली भांग अलग होती है। जिसे औद्योगिक भांग या Industrial Hemp कह सकते हैं।

Industrial Hemp Farming करने के लिए भी किसी किसी राज्य ने अनुमति दी हुई है, अधिकतर राज्यों में भांग की खेती पूरी तरह प्रतिबंधित है। उसका जो प्रमुख कारण यह है की औद्योगिक भांग और नशे के इस्तेमाल में लायी जाने वाली भांग की प्रजाति एक ही होती है, इसलिए इनमें अन्तर कर पाना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन हाल ही में उत्तराखंड के कुछ जिलों ने जैसे चम्पावत, पौड़ी इत्यादि ने Industrial Hemp Farming के लिए लाइसेंस देना शुरू कर दिया है।

hemp farming business
Hemp Plant

भांग एवं भांग के रेशों से उद्योगों में कई तरह के उत्पाद बनाये जाते हैं, और उत्तराखंड में पलायन की वजह से, जंगली जानवरों का फसल को नुकसान पहुँचाने के डर से लोगों के खेत बंजर पड़े हुए हैं। सरकार ने इसी बंजर जमीन को ध्यान में रखते हुए लोगों को Hemp Farming के लिए लाइसेंस प्रदान करना शुरू कर दिया है। चूँकि लाइसेंस देने की जिम्मेदारी और उस फसल की नियंत्रण की जिम्मेदारी जिला प्रसाशन को सौंपी गई है, इसलिए अभी सभी जिलों ने इसके लिए लाइसेंस देना शुरू नहीं किया है।

Industrial Hemp Farming करने का सबसे बड़ा फायदा यह है की इस फसल को न तो कोई जंगली जानवर नुकसान पहुँचाता है और न ही कोई पालतू जानवर। और भारत की जलवायु भी इस फसल के उत्पादन के लिए अनुकूल मानी जाती है, लेकिन भांग की खेती के प्रति लोगों में नकारात्मक सोच व्याप्त है। यही कारण है की सरकारें भी इस तरह की खेती को प्रतिबंधित करने के लिए बाध्य हैं।

उत्तराखंड में Hemp Farming को अनुमति क्यों मिली होगी?

यह प्रश्न तो आपके मष्तिष्क में कौंध ही रहा होगा, की जब पूरे देश में Hemp Farming प्रतिबंधित है, तो उत्तराखंड भांग की खेती के लिए लाइसेंस क्यों प्रदान कर रहा है। उत्तराखंड की खेती को जंगली जानवरों, बंदरों और सिंचाई के अभाव और पलायन ने लगभग खत्म कर दिया है। जहाँ पहले फसलें लहलहाया करती थी, आज वे खेत बंजर पड़े हुए हैं। चूँकि भांग एक ऐसी फसल है जिसके लिए न तो सिंचाई करने की जरुरत है, न इसे कोई जंगली जानवर नुकसान पहुँचाता है, और न ही इसे बंदरों से कोई खतरा है।

यही कारण है की उत्तराखंड सरकार चाहती है की किसान उनके बंजर पड़े खेतों में Hemp Farming करके आर्थिक रूप से सशक्त और अपनी आमदनी बढ़ाएं। यदि ऐसा होता है, तो पलायन पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है। एक आंकड़े के मुताबिक भांग की खेती करके एक किसान एक हेक्टेयर जमीन से लगभग तीन लाख रूपये तक की कमाई कर सकता है।

लेकिन सरकार को साथ में यह भी डर है की Industrial Hemp Farming की आड़ में प्रदेश भर में नशे का कारोबार न बढे। इसलिए राज्य सरकार ने लाइसेंस प्रदान करने और उस पर नियंत्रण करने की जिम्मेदारी जिला प्रसाशन को दी हुई है। वैसे देखा जाय तो विभिन्न देशों जैसे चीन, फ़्रांस, कनाडा, अमेरिका इत्यादि में औद्योगिक भांग की खेती पहले से की जा रही है। इस तरह की इस भांग में नशे की मात्रा सबसे कम 0.30 टीएचसी तक पाई जाती है। लेकिन इसके बावजूद भी उत्तराखंड सरकार ने भांग के पौंधे से सिर्फ उसका बीज और रेशा इस्तेमाल करने की अनुमति दी है। इसके फूल और पत्तियों का इस्तेमाल अभी भी प्रतिबंधित है।  

वर्तमान में देखा जाय तो Industrial Hemp farming से उत्पादित उत्पाद जैसे पौंधे के फाइबर से कार की बॉडी तक बनाई जाने लगी है। लुब्रिकेंट आयल, पेन्ट, वार्निश, पेपर, टैक्सटाइल इत्यादि उत्पादों सहित कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं। इस पौंधे की फूल, पत्तियों से कई तरह की औषधियाँ एवं कॉस्मेटिक प्रोडक्ट भी बनाये जाते हैं । इतनी बड़ी संभावनाओं को देखते हुए ही राज्य सरकार उत्तराखंड में हेम्प फार्मिंग पालिसी लाकर लोगों को इसके लिए लाइसेंस देना चाहती है।

भांग के पौंधे की विशेषताएँ

भांग के पौंधे का वानस्पतिक नाम Cannabis indica है, भारत में इसकी अनेकों प्रजाति पायी जाती हैं। इनमें कई प्रजाति ऐसी हैं जिनमें 30 टीएचसी तक नशा होता है। जबकि Industrial Hemp Farming  करने के इस्तेमाल में लायी जाने वाली प्रजाति में केवल 0.30 टीएचसी नशा होता है, जो की सामान्य भांग के मुकाबले काफी कम है। होली के अवसर पर आज भी उत्तर भारत में लोग भांग का इस्तेमाल मिठाई और ठंडाई के साथ करते हैं।

यह पौंधा एक वर्ष में 3 से 14 फीट तक ऊँचा हो सकता है, जब यह पौंधा पूर्ण रूप से बढ़ जाता है तो इसके उपरी भाग में गोल डंठल पैदा होना शुरू हो जाते हैं और इन्हीं डंठलों से रेशे या फाइबर का उत्पादन होता है । भांग के पौंधे भी नर और मादा में विभाजित होते हैं जहाँ नर पौधें से रेशे का उत्पादन अधिक होता है, तो वहीँ मादा पौंधे से बीज और मादक पदार्थ की प्राप्ति होती है। भांग के बीज का इस्तेमाल तेल निकालने और मसाले के तौर पर भी किया जाता है।

उत्तराखंड में भांग के रेशे से निर्मित कई उत्पाद आज भी देखे जा सकते हैं इनमें गढ़वाल में चांदपुर नामक भांग के पौंधे का घर काफी प्रसिद्ध है । पर्वतीय क्षेत्रों में इस तरह के पौंधे बिना बोये भी हो जाते हैं, इसलिए नियमों के मुताबिक Industrial Hemp farming करना किसी भी किसान या उद्यमी की जिन्दगी बदलने वाला फैसला हो सकता है। टेट्राहाइड्रोकेनोबिनॉल (टीएचसी) एक रसायन होता है, जो नशे के लिए जिम्मेदार होता है, और औद्योगिक भांग में यह बेहद कम पाया जाता है।

Industrial Hemp farming करनी हो तो क्या करना चाहिए?    

राज्य के नियम कानूनों के बारे में जानें क्या आप किसी ऐसे राज्य या जिले में रहते हैं, जहाँ पर Industrial Hemp Farming करना क़ानूनी रूप से प्रतिबंधित नहीं है। तो आप जिला प्रसाशन या सम्बंधित विभाग से लाइसेंस लेकर इस तरह की यह खेती शुरू कर सकते हैं। वैसे देखा जाय तो  Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985 (NDPS, Act) भारत सरकार को इंडस्ट्रियल और बागवानी उद्देश्य के लिए भांग की खेती के लिए परमिशन देने का अधिकार देता है।

लेकिन केंद्र सरकार केवल भांग की ऐसी प्रजाति जिसमें नशे यानिकी टीएचसी की मात्रा बेहद कम हो, उसी के लिए Industrial Hemp Farming करने की अनुमति दे सकती है। किस प्रजाति में साइकोएक्टिव तत्व की कितनी मात्रा उपलब्ध है, इसकी जाँच के लिए तकनीक और मानक न होना भी सबसे बड़ी बाधा है। यही कारण है की अब केंद्र सरकार औद्योगिक भांग की खेती के लिए पुख्ता रिसर्च के नतीजों को आधार मानकर ही फैसले लेती है। उत्तराखंड सरकार ने एसोसिएशन द्वारा की गई रिसर्च के नतीजों के बदौलत ही राज्य में Industrial Hemp Farming के लिए अनुमति ली हुई है।

उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है की यदि कोई उद्यमी या किसान जो Industrial Hemp Farming करना चाहता हो, उसे सबसे पहले यह पता करने की आवश्यकता होती है, की वह जिस राज्य या जिले में रह रहा है। क्या वहाँ पर ऐसी खेती करना क़ानूनी रूप से अपराध या प्रतिबंधित तो नहीं है। उसके बाद सम्बंधित विभाग या जिला प्रशाशन से लाइसेंस लेकर ही इस तरह की खेती की जा सकती है। जिन राज्यों या जिलों में भाँग की खेती प्रतिबंधित है, वहाँ यह नहीं की जा सकती ।

Q. भाँग की खेती से कितनी कमाई हो सकती है?

Ans. एक हेक्टेयर भूमि में भाँग की खेती करने पर तीन लाख रूपये तक की कमाई हो सकती है।

Q. क्या भाँग की खेती को जंगली जानवर या बन्दर नुकसान पहुँचाते हैं?

Ans. जंगली जानवर और बन्दर भाँग की खेती को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। इसके लिए अलग सी सिंचाई करने की भी आवश्यकता नहीं होती ।

अन्य लेख भी पढ़ें

तुलसी की खेती का व्यापार कैसे शुरू करें?

मधुमक्खी पालन कैसे शुरू करें?

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *